1947 के दंगों में मसीही लोगों को भी किया गया था प्रताड़ित
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय ईसाईयों को भी झेलनी पड़ीं थीं परेशानियां
1947 में स्वतंत्रता-प्राप्ति के कुछ माह पश्चात् तक सोनीपत (हरियाणा) में मसीही लोगों को काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा था। विशेषतया नवम्बर 1947 के पूर्वार्ध में पहले तो ईसाईयों को निवेदन किया गया कि वे अपने गिर्जाघरों एवं अन्य सार्वजनिक मसीही भवनों में बंटवारे के दंगों से पीड़ित व प्रभावित लोगों को ठहराने हेतु इस्तेमाल करने दें। मसीही क्लीसियाएं भी तुरन्त यह सहयोग देने हेतु तैयार हो गईं थीं। सभी स्थानीय लोगों ने उनका धन्यवाद भी किया था। परन्तु उनके अन्य भवनों में ज़बरदस्ती शरणार्थियों को ठहरा दिया गया था। सोनीपत के ईसाईयों को वहां से तुरन्तु चले जाने की धमकी भी दे दी गई थी।
गांधी जी ने किया था खेद प्रकट
नई दिल्ली में 22 नवम्बर, 1947 को एक प्रार्थना सभा को अपने संबोधन के दौरान गांधी जी ने इस घटना पर खेद प्रकट करते हुए कहा था,‘‘मसीही भाईयों को बिना वजह परेशान किया जा रहा है, जब कि उन्होंने कोई अपराध नहीं किया। ऐसा पागलपन किसी भी परिस्थिति में देश के अन्य भागों में फैलना नहीं चाहिए। भारत को समस्त विश्व के समक्ष अपना सम्मान बरकरार रखना है और ऐसे पागलपन का सामना सख़्ती से किया जाना चाहिए।’’ (राष्ट्र-पिता महात्मा गांधी जी के ऐसे सभी भाषण नई दिल्ली के सरकारी पब्लीकेशन्ज़ डिवीज़न में अब भी सुरक्षित पड़े हैं)।
राजकुमारी अमृत कौर, मसीही समुदाय व गांधी जी
भारत के स्वतंत्र होने के तुरन्त पश्चात् जब देश, विशेषतया पंजाब में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए और कुछ ही दिनों में भारत एवं पाकिस्तान के क्षेत्रों में 10 लाख से भी अधिक लोग मारे गए और इससे कई गुना अधिक घायल एवं बेघर हो गए, तो भी गांधी जी ने भारत के ईसाईयों की सुरक्षा संबंधी अपनी चिंता प्रकट की थी। सितम्बर 1947 के दौरान दिल्ली में एक प्रार्थना सभा के दौरान देश के मसीही समुदाय को दरपेश ख़तरे की बात की थी।
वास्तव में सांप्रदायिक दंगों की वजह से बेघर हुए व हिजरत करके आए अनेक लोगों के लिए दिल्ली में विशेष सरकारी शिविर (कैम्प) लगे हुए थे। कपूरथला की राजकुमारी अमृत कौर (राजकुमारी की मां मसीही विश्वासी थी, इसी लिए उन्हें मसीही भी माना जाता है) राजनीतिक तौर पर काफ़ी सक्रिय थीं तथा वह गांधी जी के साथ उन्होंने कई कार्यक्रमों में भाग लिया था। राजकुमारी अमृत कौर दिल्ली में मुसलमानों की सहायता के लिए बनाए गए विशेष शिविर में राहत कार्यों हेतु अपने साथ बड़ी संख्या में मसीही युवाओं को ले गए थे। उन्होंने पाकिस्तान व भारत के बहुत से भागों से दंगों के कारण उजड़ कर आए मुसलमानों को रोज़मर्रा की वस्तुएं पहुंचाईं थीं और उनकी हर तरह से मदद की थी। परन्तु यह बात इलाके के कुछ बहुसंख्यकों को अच्छी नहीं लगी थी, क्योंकि पाकिस्तान में मुस्लिम लोग बड़ी बेरहमी से हिन्दुओं एवं सिक्खों तथा मसीही लोगों की मार-काट कर रहे थे। इसी लिए भारत के लोगों में मुस्लमानों के लिए रोष था। परन्तु इस सब के बीच शिविर में मौजूद मुसलमानों का तो कोई दोष नहीं था।
जिन मसीही भाईयों-बहनों ने उस समय सरकारी शिविर में जाकर मुसलमानों को राहत पहुंचाई थी, कुछ बहुसंख्यक लोगों ने क्रोधित होकर उन ईसाईयों को भी उनके घरों से निकाल दिया था। गांधी जी इस तथा ऐसी अन्य घटनाओं से बेहद आहत हुए थे। गांधी जी ने राजकुमारी अमृत कौर के साथ गए मसीही लोगों के साथ घटित हुई घटना को बर्बर्तापूर्ण बताया था। परन्तु गांधी जी को इस बात की भी प्रसन्नता थी कि ऐसे मसीही लोगों को कुछ अन्य धर्म-निरपेक्ष मानसिकता वाले हिन्दु परिवारों ने ही शरण भी दी थी। गांधी जी ने आशा प्रकट की थी कि सभी विस्थापित मसीही लोग शीघ्र ही अपने-अपने घरों में लौट जाएंगे।
ईसाईयों का भी उतना ही है भारत, जितना हिन्दु व अन्य धर्मों के लोगों काः गांधी जी
गांधी जी का स्टैण्ड इस मामले में पूर्णतया स्पष्ट था कि भारत एकजुट देश है तथा यह भारत के ईसाईयों का भी घर वैसे ही है, जैसे कि अन्य धर्मों के लोगों का है। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘भारत स्वराज’ में लिखा था कि ‘‘भारत सदा एकजुट रहेगा क्योंकि इसमें विभिन्न धर्मों के लोग बसते हैं। हिन्दु लोग यह समझते हैं कि भारत केवल उन्हीं का है और यह केवल उन्हीं के सपनों की भूमि है परन्तु यहां पर हिन्दु, मोहम्मडन्ज़, पारसी एवं क्रिस्चियन्ज़ सभी रहते हैं, जिन्होंने भारत को अपना देश बनाया है, वे सभी साथी देश-वासी हैं तथा उन्हें हर हालत में एकता कायम रखनी होगी।’’
धर्म-निरपेक्षता के मामले में भारत को विश्व में आदर्श बना कर स्थापित करना चाहते थे गांधी जी
इससे पूर्व 1 दिसम्बर, 1931 को गोलमेज़ कान्फ्ऱेंस में अपने भाषण के दौरान उन्होंने कहा था कि स्वतंत्र भारत में ‘‘... आप हिन्दुओं, मुसलमानों, सिक्खों, यूरोपियनों, एंग्लो-इण्डियन्ज़, क्रिस्चियन्ज़, दलितों सभी नागरिकों को पूर्णतया एकजुटता व सदभावना से रहते हुए पाएंगे।’’ 21 फ़रवरी, 1947 को उन्होंने कहा था,‘‘कांग्रेस पार्टी विशुद्ध रूप से एक धर्म-निरपेक्ष, राजनीतिक संगठन है, जिसमें हिन्दु, मुस्लिम, सिक्ख, मसीही सभी भारतीय नागरिकों की तरह सुखद माहौल में रहते हैं और वे सभी अपनी मातृ-भूमि हेतु जीने-मरने के लिए संकल्पबद्ध हैं। हमारा उद्देश्य एक माँ के बच्चों की तरह मिलजुल कर रहने का ही होना चाहिए, जिसमें सभी लोग अपनी स्वेच्छा से किसी भी धर्म को मानें, और इस प्रकार रहें जैसे एक ही वृक्ष के असंख्य पत्ते होते हैं।’’ इसी प्रकार 9 मार्च, 1934 को उन्होंने कहा था,‘‘हिन्दुओं एवं मुस्लिम, क्रिस्चियन्ज़ तथा पारसियों की बीच किसी प्रकार का अन्तर व भेदभाव नहीं होना चाहिए, वे पूर्णतया एकजुट होने चाहिएं, जैसे कि एक हाथ की पांचों उंगलियां होती हैं।’’ उनका मानना था कि ‘‘मेरे विचार अनुसार स्वराज एक प्रकार से सांप्रदायिक आदर्श-लोक होगा, जहां ... हिन्दु, मुसलमान एवं ईसाई सभी लोग बिल्कुल सगे भाईयों की तरह रहेंगे।’’
मसीही लोगों से एक बेहतर भारत के निर्माण की आशा प्रकट की थी
गांधी जी चाहते थे कि भारत के मसीही लोग भी देश के अन्य सभी धर्मों के लोगों के साथ पूर्णतया सदभावना से रहें। 29 अगस्त, 1925 को उन्होंने बंगाल क्रिस्चियन कान्फ्ऱेंस को संबोधन (गांधी जी के ऐसे सभी भाषण नई दिल्ली के सरकारी पब्लीकेशन्ज़ डिवीज़न में अब भी सुरक्षित पड़े हैं) करते हुए कहा था कि उन्होंने त्रावनकोर (अब केरल) में बड़ी संख्या में उच्च शिक्षित एवं सभ्य भारतीय मसीही लोगों को स्वयं देखा है ‘‘और उन्होंने भी अन्य धर्मों के लोगों के प्रति किसी भी प्रकार की घृणा एवं मन्द-भावना को सदा के लिए अपने मन से निकाल दिया है। शीघतया ऐसे मसीही लोगों की संख्या बढ़ेगी और एक बेहतर भारत का निर्माण होगा।’’
-- -- मेहताब-उद-दीन -- [MEHTAB-UD-DIN]
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